प्रेम का रस ही श्री कृष्ण का महारास है -:शैलेन्द्र कृष्ण

देवरी कलां :- देवरी में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिवस कथा ब्यास वृन्दावन धाम से पधारे धर्मपथिक शैलेन्द्र कृष्ण महाराज ने कथा में पाप आतंक के पर्याय बन चुके कंश वध का वर्णन किया पाप अत्याचार जब बढ़ जाता है तब भगवान अबतार लेकर आते है और पापियों को समाप्त करके धर्म स्थापना करते है भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत लीलाओं के बारे में हम सभी ने सुना हैं. कभी माखन चोर की लीला तो कभी चक्रधारी का रुप, कभी पांडवों के दूत बनकर कौरवों की सभा में विराट रुप दिखाना तो कभी परिवार के मोह में फंसे अर्जुन को गीता का ज्ञान देना. मुरलीधर की ऐसी ही एक लीला थी उनके अपने ही मामा कंस के वध की. अपने अत्याचारों से सभी को कष्ट पहुंचाने वाले कंस का वध  कृष्ण जी ने कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को किया था. इसके साथ ही कृष्णजी ने कंस का आतंक खत्म कर भयाक्रांत प्रजा को अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी.श्री कृष्ण ने चाणूर को और बलराम ने मुष्टिक को अपने धाम बैकुण्ठ पहुंचाया। उन्हें निजधाम पहुंचने के पश्चात् श्री कृष्ण ने कंस को उसके सिंहासन से उसके केश पकड़ कर उसे घसीटा और उसके भूमि पर गिरते ही श्री कृष्ण ने उसके हृदय पर जोरदार मुक्का मारकर उसके प्राण ले लिए।इस तरह अत्याचारी कंस का अंत हुआ और भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर में धर्म स्थापना की,महाराज जी ने महारास प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भगवान कृष्ण जब साढे 9 वर्ष के थे तब वृन्दावन में गोपियों के साथ दिव्य महा रास किया इस लीला पर किसी को भी संसय नही करना चाहिये क्योंकि योगेश्वर की लीला है परमात्मा का चरित्र है जिसमे कोई दोष नही होता और गोपियों के साथ महारास भगवान ने सिर्फ इसीलिये किया क्योंकि गोपियों का प्रेम भगवान से अनंत था और जिसका निश्वार्थ प्रेम भगवान से होता उसी के साथ भगवान महारास करते है जीव एवं ईश्वर की मिलन लीला ही महारास है,इसके बाद कथा में धूम धाम से भगवान श्री कृष्ण माता रुक्मिणी के विवाह का प्रसंग भावपूर्ण श्रवण कराया गया।कथा के मुख्य यजमान भारती प्रकाश तिवारी रहे ।कथा श्रवण करने वालो में बड़ी संख्या में महिला पुरुष मौजूद रहे
संवाददाता - रामबाबू पटेल, जिला सागर (मध्यप्रदेश)
Reactions:

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ