आनंद कुशवाह (पत्रकार भिंड)
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इंसान को गलतियों का पुतला कहा जाता हैं।दुनिया में शायद ही कोई इंसान हो जिसने कभी कोई गलती ना की हो।जाने अनजाने में हम सभी से कोई ना कोई गलती हो ही जाती जाती हैं। कई बार होता है कि हम कभी अनजाने में,कभी कभी जानबूझ कर,कभी हसी मजाक में,कभी क्रोध में, किसी का दिल दुखा बैठते हैं जिसका एहसास हमें उस वक़्त नहीं होता पर जब एहसास होता हैं तो ये बात हमें अंदर से बहुत दुख देती हैं और हम अपने किये पर बहुत पछताते हैं और जब तक हम सच्चे दिल से अपनी गलती मानकर माफी नहीं मांग लेते तब तक ये बात हमारे दिल पर एक बोझ की तरह होता है।पर जैसे ही हम अपनी गलती की माफी मांगते है और सामने वाला भी माफी को स्वीकारते हुए सच्चे दिल से माफ कर देता है तो हमारे दिल पर से एक तरह का बोझ उतर जाता है और हम काफी हल्का महसूस करते हैं जिसके बाद खुशी तो महसूस होगी ही ऐसे ही यदि कोई सच्चे दिल से अपनी गलती को मानते हुए हमसे माफी मांगता है तो अच्छा लगता हैं। और खुशी इस बात की होती हैं कि माफी मांगने वाले को अपनी गलती का अहसास हुआ और पूरे दिल से माफी मांग रहा है। यहां पर माफी मांगने और क्षमा करने बारे में एक बात और कहना चाहूंगा.. कि अगर आपसे से कोई गलती होती हैं तो अपनी गलती को मानते हुए सच्चे दिल से माफी मांगे आधे-अधूरे मन से नहीं। ऐसे यदि कोई आपसे कोई माफी मांगे तो सच्चे दिल से ही माफ करे बेमन से नहीं।क्योंकि किसी को माफ कर देने और किसी से माफी मिलने में तभी हम सच्ची खुशी का अहसास कर पाएंगे जब माफी मांगने वाले और माफ करने वाले की भावनाएं सच्ची हो।
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