Sagar -:अभिमानी को नही भक्त को भगवान का दर्शन होता है - शैलेन्द्र कृष्ण।The State Halchal News

देवरीकला-: शहर स्थित सुभाष वार्ड मे चल रही श्रीमद भागवत कथा के पंचम दिवस मे प्रवेश करते हुए श्रीमद भागवत कथा के राष्ट्रीय प्रवक्ता "भागवतरत्न" धर्मपथिक पूज्य श्री शैलेन्द्र कृष्णजी महाराजजी ने अपनी परम पवित्र व्यासपीठ से मधुर एवं सरस वाणी मे श्रीमद भागवत कथा का अमृतपान भाविक भक्तों को कराते हुए कहा की समय जिसका साथ देता है वह बड़ों बड़ों को मात देता है। तुम थे समय था पर उस समय मै नहीं था। आज मै हुँ समय है पर तुम नहीं हो और एक समय ऐसा आएगा ज़ब मै और तुम दोनों होंगे पर समय नहीं होगा। और एक समय ऐसा आएगा ज़ब समय होगा पर में और तुम दोनों नहीं होंगे।इसलिए प्यारे समय एवं अच्छे व्यक्ति दोनों की कीमत करना सीखो। पूज्य गुरुदेवजी ने शिक्षाप्रद बाते श्रोताओं को बताते हुए अपनी व्यासपीठ से उन लोगों को सम्मान दिया जो घर से बाहर रहकर काम धंधा करके पैसे कमाते है और बच्चों को अच्छी शिक्षा देने एवं घर चलाने मे सहयोगी बनते है यह भी एक तपस्या है उन्हें पूज्य महाराजजी ने प्रणाम कहा। 
पंचम दिवसीय कथा मे भगवान कृष्ण की बाललीलाओं का वर्णन करते हुए पूज्य महाराज ने कहा की ज़ब सनतकुमार वैकुंठ मे भगवान का दर्शन करने गए तब भगवान के पार्षद जय विजय ने उन्हें द्वारपर रोका तब ब्रम्हपुत्रों ने जय विजय को तीन जन्मों तक राक्षस बनने का श्राप दिया। पहले जन्म मे हिरण्याक्ष हिरण्यकश्यप बने। दूसरे जन्म मे रावण कुम्भकर्ण बने और तीसरे जन्म मे दंतवक्र और शिशुपाल बने। इस प्रसंग से सिख देते हुए पूज्य महाराजजी ने कहा की जिन मंदिरों मे मैनेजमेंटर पैसे से vip दर्शन कराते है एवं गरीब भक्तों को दर्शन से मना कर देते है उन लोगों की सोचिये क्या दशा होगी ज़ब साक्षात् भगवान के द्वारपाल जय विजय को भी राक्षस बनना पड़ा। पूज्य महाराज ने सभी मंदिर वालों से व्यासपीठ से निवेदन किया की दर्शन का अधिकार अमीर गरीब सभी के लिये एकसमान होना चाहिये। कृष्ण कन्हैया के अवतरण से सभी प्रसन्न थे सिवाय कंस के। कंस ने वकासूर की बहन पूतना को छोटे से कन्हैया को मारने के लिये भेजा। सुंदर रूप धारण कर पूतना 84 कोस मे स्थित सभी छोटे बच्चों को मारते मारते पहुंची गोकुल मे।  जैसे ही पूतना को कृष्ण कन्हैया ने देखा तो छोटे से कन्हैया रोये नहीं बल्कि अपनी आँखों को बंद कर लिया क्योंकि भगवान ने सोचा की मै केवल 7 दिन का हुँ और अभी तक माखन और दूध तो मैंने पिया नहीं और यह आयी मुझे जहर पिलाने जो मुझे दूध पिलाये माखन खिलाये उन्हें मै देखना पसंद करता हुँ जो जहर पिलाये उसे नहीं। इसलिए भगवान ने आँखे बंद कर ली। और महादेव का ध्यान करने लगे। ज़ब तक आंखे खुली होती है तब तक संसार दीखता है किन्तु ज़ब आँखे बंद करते है तब भगवान दिखना प्रारम्भ होता है यही ध्यान है। भगवान सोचते है पूतना अब मेरे पास आ ही गयी है तो इसका उद्धार मै ही कर दूँ क्योंकि अगर इस बेचारी को व्रजवासियों ने मारा तो इसका कल्याण नहीं होगा। छोटे से कन्हैया पूतना के स्तनों का दूध और जहर दोनों पी लेते है अब तो केवल प्राण बचे पूतना के पूतना प्राणों की भीख मांग रही होती तब भगवान पूतना से कहते पूतना मेरी यही तो मजबूरी है की मै किसीको पकड़ता नहीं और एक बार पकड़ लेता हुँ फिर उसका कल्याण किये बिना छोड़ता नहीं अब तुम्हे कैसे छोड़ दूँ। भगवान ने पूतना का मोक्ष कर दिया। पूज्य महाराजजी ने इस प्रसंग से सिख दियी की पूतना कोई एक व्यक्ति और नाम नहीं बल्कि पूतना एक राक्षसी विचार है, एक सिद्धांत है जो अहित से भरा है राग द्वेष ईर्ष्या से भरा है। इसलिए भगवान ने पूतनारूपी आसुरी विचारों का नाश किया। भगवान से रिश्ता जरूर जोड़ो जैसे पूतना का दुश्मनी का रिश्ता था फिर भी भगवान ने उद्धार किया। तो आप हम भगवान से प्रेमपूर्ण रिश्ता जोड़ेंगे तो वे हमारा उद्धार भी निश्चित ही करेंगे। माखनचोरी लीला श्रवण कराते हुए कहा की ग्वालबालों के साथ मिलकर कन्हैया गोपियों के घर का माखन चोरी करते है तो भगवान केवल माखन नहीं चोरी कर रहे बल्कि समस्त ब्रजवासियों को छोटे से कन्हैया आनंद प्रदान कर रहे है। इंद्र के अहंकार का नाश करने  एवं प्रकृति के धरती पर सम्मान हेतु भगवान ने गिरिराज पर्वत को अपनी ऊँगली पर उठा लिया एवं मानसी गंगा का प्राकट्य किया। इस प्रकार भगवान ने व्रज मे अवतार लेकर समस्त व्रजवासियों का उद्धार किया। गोवर्धन पूजा के साथ साथ भक्तों ने 56 भोग को श्री गिरिराजजी को अर्पित किया। इसी के साथ आज पूज्य महाराजजी ने अपनी सुमधुर आवाज मे भजन को श्रवण कराया एवं आरती के पश्चात प्रसाद 56 भोग वितरित किया गया।
संवाददाता - रामबाबू पटेल देवरी कला, जिला सागर (मध्यप्रदेश)



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