नई दिल्ली:
US-India trade tariff के तहत अमेरिका द्वारा भारत से आयात पर 50% तक शुल्क लगाने की हालिया घोषणा के बावजूद, दवाइयाँ और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को इस टैरिफ से छूट दी गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन क्षेत्रों में भारत की रणनीतिक और व्यावसायिक भूमिका इतनी अहम है कि अमेरिका के लिए इन्हें नज़रअंदाज़ करना संभव नहीं है।
अमेरिका-भारत व्यापार शुल्क (US-India trade tariff ) की पृष्ठभूमि
6 अगस्त, 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत से आयातित वस्तुओं पर अतिरिक्त 25% शुल्क की घोषणा की, जिससे कुल शुल्क 50% तक पहुँच गया। यह निर्णय भारत द्वारा रूस से तेल आयात और ब्रिक्स में उसकी भूमिका को लेकर अमेरिका की चिंता का नतीजा बताया जा रहा है। हालांकि, यह US-India trade tariff फार्मास्यूटिकल्स, स्मार्टफोन, सेमीकंडक्टर और कुछ अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर लागू नहीं होगा।
भारतीय दवाइयाँ: अमेरिकी स्वास्थ्य सुरक्षा का आधार
भारत को “दुनिया की फार्मेसी” कहा जाता है और अमेरिका जेनेरिक दवाओं व सक्रिय औषधीय घटकों (API) के लिए भारत पर बहुत हद तक निर्भर है। अमेरिका में उपयोग की जाने वाली लगभग 30% जेनेरिक दवाएँ भारत से आती हैं। यदि US-India trade tariff इन पर लागू होता, तो इससे दवाओं की कीमतें बढ़ जातीं और अमेरिका में स्वास्थ्य सेवाओं पर गंभीर असर पड़ सकता था। इसलिए इन दवाओं को शुल्क से मुक्त रखा गया है।
इलेक्ट्रॉनिक्स और स्मार्टफोन: भारत की वैश्विक क्षमता
भारत अब वैश्विक स्तर पर स्मार्टफोन और इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन का केंद्र बन चुका है। Apple, Samsung और Xiaomi जैसी कंपनियाँ भारत में मैन्युफैक्चरिंग कर रही हैं। वित्तीय वर्ष 2025 में भारत ने अमेरिका को $14.6 बिलियन मूल्य के इलेक्ट्रॉनिक सामान का निर्यात किया, जिसमें स्मार्टफोन एक बड़ा हिस्सा था। US-India trade tariff यदि इन पर लगाया जाता, तो अमेरिकी बाजार में कीमतें बढ़ सकती थीं, जिससे उपभोक्ताओं पर सीधा असर होता।
रणनीतिक स्थिति में भारत की बढ़ती अहमियत
भारत ने US-India trade tariff को लेकर अमेरिकी प्रशासन के साथ बातचीत में अपनी रणनीतिक ताकत का उपयोग किया है। दवा और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे अहम क्षेत्रों में भारत की मजबूती ने अमेरिका को इन्हें शुल्क से बाहर रखने के लिए मजबूर किया। इसके बावजूद, कपड़ा, चमड़ा, रत्न-आभूषण और समुद्री उत्पादों पर 50% शुल्क लागू है, जिससे $87 बिलियन के भारतीय निर्यात पर दबाव बढ़ा है।
सरकार की प्रतिक्रिया और विकल्प
भारत सरकार ने प्रभावित क्षेत्रों को राहत देने के लिए विभिन्न उपाय किए हैं। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने MSME सेक्टर के लिए ब्याज सब्सिडी और क्रेडिट गारंटी जैसे कदमों की घोषणा की है। इसके साथ ही, भारत यूरोपीय संघ, मध्य पूर्व और आसियान देशों जैसे नए बाजारों की ओर रुख कर रहा है ताकि US-India trade tariff से प्रभावित निर्यात की भरपाई की जा सके।
भू-राजनीतिक तनाव और व्यापार नीति
US-India trade tariff सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि भू-राजनीतिक घटनाओं से भी जुड़ा हुआ है। अमेरिका, भारत द्वारा रूस से तेल खरीद और ब्रिक्स संगठन में उसकी सक्रिय भूमिका को लेकर नाराज है। इसके जवाब में भारत ने भी सख्त रुख अपनाया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट किया है कि भारत अपने किसानों और लघु उद्योगों के हितों से समझौता नहीं करेगा।
निष्कर्ष
US-India trade tariff के चलते कई भारतीय उत्पादों को अमेरिका में प्रवेश में कठिनाई हो रही है, लेकिन फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स में भारत की मजबूती ने उसे इस संकट से बचाए रखा है। यह दोनों देशों के बीच गहरे आर्थिक और रणनीतिक संबंधों का प्रमाण है। आगे चलकर भारत को प्रभावित क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता बढ़ानी होगी और नए वैश्विक बाजारों में अपनी उपस्थिति मजबूत करनी होगी।
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